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साइकिल के दिन / विनय सौरभ

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कोई मीठी सी पुलक जागती है
साइकिल के दिन पीछा करते हैं
एक पञ्चर बनाने वाले का चेहरा
साथ चलता आता है

स्कूल में गुलमोहर के नीचे खड़ी
सैकड़ों साइकिलों की याद तो
होगी तुम्हें !