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साख भरै सबद / नीरज दइया

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दरद रै सागर मांय
म्हैं डूबूं-तिरूं
कोई नीं झालै-
महारो हाथ ।

म्हैं नीं चावूं
म्हारी पीड़ रा
बखाण
पूगै थां तांई
कै उण तांई ।

पण नीं है कारी
म्हारै दरद री
साख भरै-
म्हारो सबद-सबद ।