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सागर की लहर लहर में / सुमित्रानंदन पंत

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सागर की लहर लहर में
है हास स्वर्ण किरणों का,
सागर के अंतस्तन में
अवसाद अवाक् कणों का !

यह जीवन का है सागर,
जग-जीवन का है सागर,
प्रिय-प्रिय विषाद रे इसका
प्रिय प्रि’ आह्लाद रे इसका !

जग जीवन में हैं सुख-दुख,
सुख-दुख में है जग जीवन;
हैं बँधे बिछोह-मिलन दो
देकर चिर स्नेहालिंगन !

जीवन की लहर-लहर से
हँस खेल-खेल रे नाविक !
जीवन के अंतस्तल में
नित बूड़-बूड़ रे भाविक !

(फरवरी,1932)