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"सात छेद वाली मैं (ताँका-संग्रह) / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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* शब्द-चयन और प्रस्तुति की उत्कृष्टता तो गागर में सागर भरने जैसी है | * शब्द-चयन और प्रस्तुति की उत्कृष्टता तो गागर में सागर भरने जैसी है |
21:28, 18 मई 2012 का अवतरण
'सात छेद वाली मैं ’ (2011) ताँका का स्वतन्त्र संग्रह है। हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी दिसम्बर ११, २०११(रविवार) को दोपहर के बाद २ बजे ब्रैम्पटन लाइब्रेरी(कैनेडा) की चिंक्गूज़ी ब्रांच में बेसमेंट के सभागार में डॉ. सुधा गुप्ता की "चोका" पुस्तक "ओक भर किरनें" ,ताँका पुस्तक 'सात छेद वाली मैं ’ का लोकार्पण रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' द्वारा किया गया। कार्यक्रम में हिन्दी चोका की इस प्रथम पुस्तक के लोकार्पण के बाद श्री हिमांशु जी ने थोड़ी चर्चा के बाद इसी पुस्तक के पीले गुलाब , रैन बसेरा और सगुन -पाखी चोका का पाठ किया।
- शब्द-चयन और प्रस्तुति की उत्कृष्टता तो गागर में सागर भरने जैसी है
- सुधा जी जब लिखती हैं तो मानो भावों का दरिया बहने लगता है और पढ़ने वाला बहता चला जाता है ...
- सभी हाइकु एक से बढ़कर एक हैं ....
- पाठक की तो पढ़ते समय आँखें खुली की खुली और होंठ सिल जाते हैं जब आपको पढ़ते हैं !