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"साथ खड़े हैं जनता के ख़ुद को जनसेवक कहते / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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साथ खड़े हैं जनता के ख़ुद को जनसेवक कहते
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मौक़ा पाते ही जनता का ख़ू़न चूसने लगते
  
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वोट माँगना होता है तो चरण भी छूकर आते
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ग़रज निकल जाती है तो दूरियाँ बनाकर रखते
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बगल बैठ जायें तो उनकी गरिमा घट जाती है
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ये किसान मज़दूर दूर से ज़्यादा अच्छे लगते
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सीधी सरल हमारी बानी खरी-खरी हम बोलें
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मुश्किल नहीं हैं तुम-सा बनना, मगर ख़ुदा से डरते
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और किसी ने हवा भरी है लेकिन फूल गये हैं
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ये गुब्बारे किस गुमान में आसमान में उड़ते
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मिट्टी से ही पैदा हुए हैं, मिट्टी में मिल जाना
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मिट्टी की ताक़त को लेकिन देर से लोग समझते
 
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15:10, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

साथ खड़े हैं जनता के ख़ुद को जनसेवक कहते
मौक़ा पाते ही जनता का ख़ू़न चूसने लगते

वोट माँगना होता है तो चरण भी छूकर आते
ग़रज निकल जाती है तो दूरियाँ बनाकर रखते

बगल बैठ जायें तो उनकी गरिमा घट जाती है
ये किसान मज़दूर दूर से ज़्यादा अच्छे लगते

सीधी सरल हमारी बानी खरी-खरी हम बोलें
मुश्किल नहीं हैं तुम-सा बनना, मगर ख़ुदा से डरते

और किसी ने हवा भरी है लेकिन फूल गये हैं
ये गुब्बारे किस गुमान में आसमान में उड़ते

मिट्टी से ही पैदा हुए हैं, मिट्टी में मिल जाना
मिट्टी की ताक़त को लेकिन देर से लोग समझते