भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
 
साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
खूब पर्दा है यह! जवाब नहीं  
+
ख़ूब पर्दा है यह! जवाब नहीं  
  
 
कैसे फिर से शुरू करें इसको  
 
कैसे फिर से शुरू करें इसको  
 
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं
 
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं
  
क्यों दिए पाँव उसके कूचे में  
+
क्यों दिये पाँव उसके कूचे में  
 
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
 
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
  
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
  
 
मुस्कुराने की बस है आदत भर
 
मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख्वाब नहीं
+
अब इन आँखों में कोई ख़्वाब नहीं
  
 
मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
 
मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
 
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं
 
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं
 
<poem>
 
<poem>

01:22, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
ख़ूब पर्दा है यह! जवाब नहीं

कैसे फिर से शुरू करें इसको
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं

क्यों दिये पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं

आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं

मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख़्वाब नहीं

मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं