भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साधो यहै तरक्की आय / बोली बानी / जगदीश पीयूष

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:46, 24 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह=बोली...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साधो यहै तरक्की आय
कुछु के मुंह मा सोने क सिक्का कुछु के मुंह मा हाय

ई बिकास की राह प चलिकै देसु कहां तक जाय
ख्यातन केरी फसिलि छांड़िकै सब कुछु महंग बिकाय

कर्जु लेय फिरि कसै सिकंजा देति सबै रगदाय
हारि क होरी आपनि देंही फांसि प दे लटकाय

प्रेमचंद होती तौ लिखती भांति भांति समुझाय
हब को द्याखै आपनि ढपली ठेलुहा रहे बजाय

हकु न मिलै भिच्छा मांगे ते गवा समझि मा आय
उइकी बढ़िकै नट्टी पकरौ जो तुमते खउख्याय