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साध साध सब कोउ कहै, दुरलभ साधू सेव / दयाबाई

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दयाबाई का कहना है कि साधु-संत की सेवा स्वयं भगवान की सेवा है। संसार रूपी सागर को पार करने के लिए यदि हरिनाम नाव की तरह है तो साधु उसका खेने वाला है; इसलिए सत्संग और साधु-सेवा तो करनी ही चाहिए-

साध साध सब कोउ कहै, दुरलभ साधू सेव।
जब संगति ह्वै साधकी, तब पावै सब भेव॥
साध रूप हरि आप हैं, पावन परम पुरान।
मेटैं दुविधा जीव की, सब का करैं कल्यान॥
कोटि जक्ष ब्रत नेम तिथि, साध संग में होय।
विपम ब्याधि सब मिटत है, सांति रूप सुख जोय॥
साधू बिरला जक्त में, हष सोक करि हीन।
कहन सुनन कूँ बहुत हैं, जन-जन आगे दीन॥
कलि केवल संसार में और न कोउ उपाय।
साध-संग हरि नाम बिनु मन की तपन न जाय॥
साध-संग जग में बड़ो, जो करि जानै कोय।
आधो छिन सतसंग को, कलमख डारे खोय॥