भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं / सुदर्शन फ़ाकिर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 25 सितम्बर 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं

ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहनेवाले
जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं

फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं

चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर"
जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं