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सालपाते फट्याङ्ग्रोलाई / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा

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क.
चिल्लो ताजा हरियो सुन्दर
सालको नकली पात !
दुरुस्त रेखा, धर्सा, शिरा छन् !
विशालताका साल विपिनको
तरु शाखाको ए सुन्दर पतङ्ग !
अभिनवजात !

ख.
रुपकी माउ, इच्छाशक्ति,
जादूगर्नी खासा !
प्रकृतिको यो संरक्षक रङ्ग
बीच बोल्दछे क्या वाचाल
युग–भाषा !

ग.
कस्तो सफल वाह ! तेरो समाधि
यो अङ्कुर,
सहस्र संवत्सर भर विकसिस् !
जिइस् तँ,
व्यापी क्षणभङ्गुर !
पतङ्ग मरे कति, पतङ्ग मरेन,
त्यसको विकस्यो अङ्कुर !

घ.
अभीष्ट आवश्यक भावुक जो
कवि हो यस जन–वनमा रे !
जादूको या परिणति दिनमा
दूर नसक्ला ?