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सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए (ग़ज़ल) / अली सरदार जाफ़री

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ग़ज़ल१
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सितारों के पयाम आये बहारों के सलाम आये
हज़ारों नामा आये शौक़ मेरे दिल के नाम आये
न जाने कितनी नज़रें इस दिले-वहशी पे पड़ती हैं
हर इक को फ़िक्र है इसकी, ये शाहीं ज़ेरे-दाम आये
इसी उम्मीद में बेताबी-ए-जाँ बढ़ती जाती है
सुकूने-दिल जहाँ मुमकिन हो शायद वो मुक़ाम आये
हमारी तश्नगी बुझती नहीं शबनम के क़तरों से
जिसे साकी़गरी की शर्म हो आतिश-ब-जाम आये
इन्हीं राहों में शैख़ो-मुह्तसिब<ref>उपदेशक</ref> हाइल रहे अक्सर
इन्हीं राहों में हूराने-बिहिश्ती के ख़्याम<ref>खे़मे का बहुवचन</ref> आये
निगाहें मुंतज़िर हैं एक ख़ुर्शीदे-तमन्ना की
अभी तक जितने मिह्‌रो-माह आये नातमाम आये
ये आलम लज़्ज़ते-तख़्लीक़ का है रक़्से-लाफ़ानी
तसव्वुर ख़ानए-हैरत में लाखों सुब्‌हो-शाम आये
कोई ‘सरदार’ कब था इससे पहले तेरी महफ़िल में
बहुत अहले-सुख़न<ref>रचनाकार,कवि,लेखक</ref> उट्ठे बहुत अहले-कलाम आये

शब्दार्थ
<references/>