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रीढ़ की हड्डी रखी | रीढ़ की हड्डी रखी | ||
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कटी है उम्र-सारी | कटी है उम्र-सारी | ||
आस्था से अस्मिता तक | आस्था से अस्मिता तक | ||
− | जी करे जिसका | + | जी करे जिसका — |
− | + | ख़रीदे, हम समूचे बिक रहे हैं । | |
पक्ष कोई भी न अपना | पक्ष कोई भी न अपना | ||
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पैबस्त भ्रम हैं | पैबस्त भ्रम हैं | ||
इधर भी हैं, उधर भी हैं | इधर भी हैं, उधर भी हैं | ||
− | दरअसल | + | दरअसल — |
हम पेण्डुलम हैं | हम पेण्डुलम हैं | ||
गिरगिटों के वंशधर हम, | गिरगिटों के वंशधर हम, | ||
सिर्फ़ दिखने के लिए ही | सिर्फ़ दिखने के लिए ही | ||
− | आदमी-से दिख रहे हैं | + | आदमी-से दिख रहे हैं । |
शीर्ष पर पाखण्ड की सत्ता | शीर्ष पर पाखण्ड की सत्ता | ||
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अब कभी | अब कभी | ||
जलती नहीं है | जलती नहीं है | ||
− | पाश, नागार्जुन,निराला और | + | पाश, नागार्जुन, निराला और |
कबिरा के लिखे पर | कबिरा के लिखे पर | ||
− | पोत हम कालिख रहे हैं | + | पोत हम कालिख रहे हैं । |
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15:52, 10 जून 2021 के समय का अवतरण
क्या लिखा, अब ये न पूछो,
सिर्फ़ —
लिखने के लिए हम लिख रहे हैं ।
रीढ़ की हड्डी रखी
दरबार में
गिरवी हमारी
हर जगह गिरकर
उठाने में
कटी है उम्र-सारी
आस्था से अस्मिता तक
जी करे जिसका —
ख़रीदे, हम समूचे बिक रहे हैं ।
पक्ष कोई भी न अपना
दृष्टि में
पैबस्त भ्रम हैं
इधर भी हैं, उधर भी हैं
दरअसल —
हम पेण्डुलम हैं
गिरगिटों के वंशधर हम,
सिर्फ़ दिखने के लिए ही
आदमी-से दिख रहे हैं ।
शीर्ष पर पाखण्ड की सत्ता
हमें
खलती नहीं है
आग सीने में हमारे
अब कभी
जलती नहीं है
पाश, नागार्जुन, निराला और
कबिरा के लिखे पर
पोत हम कालिख रहे हैं ।