भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीजर का रोष / आर्थर रैम्बो / मदन पाल सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 27 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आर्थर रैम्बो |अनुवादक=मदन पाल सिं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(सेदां के युद्ध के बाद नेपोलियन तृतीय)

काले कपड़ों में, सिगार दाँतों में दबाए
एक कान्तिहीन आदमी जा रहा है फूलों के लॉन से
यूँ निर्बल सोच रहा है बार-बार, त्यूलेरी के बगीचे के पुष्पों के बारे में
और कभी-कभी उसकी बुझी-सी तिरछी ऑंखें चमकने लगती हैं ।

क्योंकि सम्राट है उन्मत, अपने बीस वर्ष के शासन के ताण्डव से
और कहा था उसने : मैं बुझाने वाला हूँ आज़ादी की मशाल
आराम से जैसे बुझती है एक मोमबत्ती,
आज़ादी तो फिर जी उठी
और वह अपने आपको महसूस करता है ठगा-सा, शक्तिहीन ।

वह क़ैद हो गया ! और अब उसके बन्द होठों पर किसका नाम थरथराता है ?
वह महसूस करता है – कैसा निर्दयी पश्चाताप ?
राजा की मृत बुझी आँखों से
यह कोई नहीं जान सकेगा !

वह याद करता है कर्म, अपने उस ऐनक वाले साथी के
और देख रहा है आग में ख़ाक होते, धूम्र उड़ाते अपने सिगार को
जैसे महल 'सन्त क्लॉद' से हल्की नीली साँझ में उठता था धुआँ ।

मूल फ़्रांसीसी भाषा से अनुवाद : मदन पाल सिंह