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सीने में बसर करता है ख़ुशबू सा कोई शख़्स / संकल्प शर्मा
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करता है बसर सीने में जादू-सा कोई शख़्स,
फूलों-सा कभी और कभी चाकू-सा कोई शख़्स।
पहले तो सुलगता है वो लोबान की मानिंद,
फिर मुझमें बिखर जाता है ख़ुशब- सा कोई शख़्स।
मुद्दत से हूँ किसी को निगाहों में संभाले,
बहता नहीं अटका हुआ आँसू-सा कोई शख़्स।
ख़्वाबों के दरीचों में माजी की हवा से,
लहराता है उलझे हुए गेसू-सा कोई शख़्स।
शाख ऐ शजर को देख के वो याद बहुत आया,
मुझसे जुदा हुआ मेरी बाजू-सा कोई शख़्स।
ग़ज़लों की बदौलत है वो शख्स निहां मुझमें,
सरमाया ऐ हस्ती है उर्दू-सा कोई शख़्स।
नाकामियों के स्याह अंधेरों में आज भी,
मिल जाता है उम्मीद के जुगनू सा कोई शख़्स।