भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुख और दुख तो आते जाते / अशेष श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशेष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 36: पंक्ति 36:
 
मन को भाये या ना भाये
 
मन को भाये या ना भाये
 
कोई साथ सदा ना रहता...
 
कोई साथ सदा ना रहता...
 +
 +
कभी अचानक खुश हो जाता
 +
बिना वज़ह कभी दुख में रहता
 +
बारिश के मौसम जैसा ही
 +
मन तो सदा बदलता रहता...
 
</poem>
 
</poem>

23:37, 23 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

सुख और दुख तो आते जाते
जीवन तो ये चलता रहता
कभी धूप तो कभी छाँव है
मौसम सदा बदलता रहता...

कल जो था वह आज ना रहता
आज जो है वह कल ना रहता
परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है
काल चक्र ये चलता रहता...

नदियों का ये निर्मल पानी
वक्त के जैसा कलकल बहता
नीर नया है नदी पुरानी
पानी सदा बदलता रहता...

सृष्टि के प्रारंभ से अब तक
स्थायी कोई रह ना पाता
कितने आये और गये
आना जाना चलता रहता...

असफलता विफलता का ये
खेल सदा ही चलता रहता
वीर न कभी उद्वेलित होता
सतत कर्म वह करता रहता...

मिलने और बिछड़ने का क्रम
सदा यहाँ तो लगा ही रहता
मन को भाये या ना भाये
कोई साथ सदा ना रहता...

कभी अचानक खुश हो जाता
बिना वज़ह कभी दुख में रहता
बारिश के मौसम जैसा ही
मन तो सदा बदलता रहता...