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सुख दुख / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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सुख दुख (जीवन दर्शन)
 
यौवन के पथ पर ऐसे ही मन को
लुटा और आँखों में ले करके रोदन को,
जो सुख होता धोखा खा कर पछताने में,
जो सुख होता फिर फिर कर धोखा खाने में
अमर वही सुख तेा करता नश्वर जीवन को
यौवन के पथ पर जा कर ऐसे ही मन केा
सपनों में धन सा मिलता हैे सुख जग जीवन को,
बिजली सी आलोकित करती क्षण भर हंसी रूदन को,
पहिन वसन काटों के आता दुख बाहें फैलाये,
निर्मम आलिंगन से करता क्षत विक्षत यौवन को।
शीत शिशिर में सूरज की सुकुमार तपन सी,
प्रिय लगती हैं किरणें इस सुख कर यौवन की
( सुख दुख कविता का अंश)