भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 4

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:04, 14 फ़रवरी 2011 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(सुदामा)

दीन जानि काहू पुरूस, कर गहि लीन्हों आय ।
दीन द्वार ठाढो कियो, दीनदयाल के जाय ।।31।।

द्वारपाल द्विज जानि कै, कीन्हीं दण्ड प्रनाम ।
विप्र कृपा करि भाषिये, सकुल आपनो नाम ।।32।।

नाम सुदामा, कृस्न हम, पढे. एकई साथ ।
कुल पाँडे वृजराज सुति, सकल जानि हैं गाथ ।।33।।

द्वारपाल चलि तहँ गयो, जहाँ कृस्न यदुराय ।
हाथ जोडि. ठाढो भयो, बोल्यो सीस नवाय ।।34।।

(श्रीकृष्ण का द्वारपाल सुदामा से)

सीस पगा न झगा तन में प्रभुए जानै को आहि बसै केहि ग्रामा ।
धोति फटी.सी लटी दुपटी अरुए पाँय उपानह की नहिं सामा ।।
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एकए रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा ।
पूछत दीन दयाल को धामए बतावत आपनो नाम सुदामा ।।35।।

बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनिए
छाँड़े राज.काज ऐसे जी की गति जानै कोघ्
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँयए
भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै कोघ्
नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरिए
बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने कोघ्
जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधुए
ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने कोघ् ।।36।।

लोचन पूरि रहे जल सों, प्रभु दूरिते देखत ही दुख मेट्यो ।
सोच भयो सुुरनायक के कलपद्रुम के हित माँझ सखेट्यो ।
कम्प कुबेर हियो सरस्यो, परसे पग जात सुमेरू ससेट्यो ।
रंक ते राउ भयो तबहीं, जबहीं भरि अंक रमापति भेट्यो ।।37।।

भेंटि भली विधि विप्र सों, कर गहिं त्रिभुवन राय ।
अन्तःपुर माँ लै गए, जहाँ न दूजो जाय ।।38।।

मनि मंडित चौकी कनक, ता ऊपर बैठाय ।
पानी धर्यो परात में, पग धोवन को लाय ।।39।।

राजरमनि सोरह सहस, सब सेवकन सनीति।
आठो पटरानी भई चितै चकित यह प्रीति ।।40।।