भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुधि मोरी कहे बिसराई नाथ / शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 14 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | }} {{KKCatRajasthan}} <poem}} सुधि ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

<poem}} सुधि मोरी काहे बिसराई नाथ। बहुत भये दिन तड़फत हमको तड़फ तड़फ तड़फात। अब तो आन उबारो नैया अपने कर गहो हाथ।। अवगुन हम में सब गुन तुम में फिर काहे ठुकरात। हम जो पूत कपूत हैं तेरे तुम हमरे पितु मात।। नयन नीर भर आये हमरे बरसा ज्यों बरसात। तुम बिन हमरी कौन खबर ले दिन सब बिते जात।। अपने को अपना कर राखो कबहु न छाड़ो हाथ। शिवदीन तुम्हारा गुण नित गावे ऊठत ही परभात।।