भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुनता हूँ कि नहीं इनकारी है इस बात से / शहरयार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार }} {{KKCatKavita}} <poem> सुनत…)
(कोई अंतर नहीं)

12:15, 28 सितम्बर 2010 का अवतरण

सुनता हूँ कि नहीं इनकारी है इस बात से
कोई निसबत थी कभी तुझको मेरी ज़ात से

तू मेरे हमराह था दरवाज़े तक शाम के
उसके आगे क्या हुआ पूछा जाये रात से

पिछली बारिश में मुझे ख़्वाहिश थी सैलाब की
अबके तू बतला मुझे क्या माँगूं बरसात से

काम आए जो हिज्र के हर आइन्दा मोड़ पर
ऐसा इक तोहफा मुझे दे तू अपने हाथ से

हाँ मुझको भी देखले जीने की लत पड़ गई
हाँ तूने भी कर लिया समझौता हालात से