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सुनो— / केदारनाथ अग्रवाल

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मंत्रियों! मुसकान से या शान से शासन न बदला
खद्दरी यश-गान से खलिहान में आयी न कमला

पंचवर्षी योजना भी हो रही है आज विफला
खेत के हर बीज से है रोगिनी का हाथ निकला

माननीयो! कागजी फरमान से सूरज न निकला
आबनूसी रात का फैला हुआ काजल न पिघला

वोट लेकर चोट करने से हुआ है देश दुबला
हाय तुमने आदमी का शीष कुचला वेश कुचला

शूरमाओ! पालने में पूतना के अब न झूलो
आदमी की खाल ओढ़े आदमी को अब न भूलो

शांति के सम्राट मेरे आक्षितिज आलोक उगलो

रचनाकाल: ०९-११-१९५३