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"सुन पति-वचन स्नेह में साने / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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माँ का हृदय हो उठा कातर  
 
माँ का हृदय हो उठा कातर  
 
बोली सुत की ओर पलटकर--
 
बोली सुत की ओर पलटकर--
'तू यह दुख क्या जाने!
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'तूने सेतु सिन्धु पर बाँधा
 
'तूने सेतु सिन्धु पर बाँधा
 
पर नारी का हृदय न साधा
 
पर नारी का हृदय न साधा
 
अब तक मिली न कोई बाधा
 
अब तक मिली न कोई बाधा
पूरे जो प्रण ठाने
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'पर ऐसी मर्यादा पाले!
 
'पर ऐसी मर्यादा पाले!
 
पत्नी की लज्जा न सँभाले!
 
पत्नी की लज्जा न सँभाले!
 
कभी निकाले, कभी बुला ले
 
कभी निकाले, कभी बुला ले
क्यों वह रोष न माने!'
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सुन पति-वचन स्नेह में साने  
 
सुन पति-वचन स्नेह में साने  
 
काँपी देह, नयन भर आये, कहा न कुछ सीता ने  
 
काँपी देह, नयन भर आये, कहा न कुछ सीता ने  
 
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04:13, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


सुन पति-वचन स्नेह में साने
काँपी देह, नयन भर आये, कहा न कुछ सीता ने
 
पुत्रवधू को देख निरुत्तर
माँ का हृदय हो उठा कातर
बोली सुत की ओर पलटकर--
                    'तू यह दुख क्या जाने!
 
'तूने सेतु सिन्धु पर बाँधा
पर नारी का हृदय न साधा
अब तक मिली न कोई बाधा
                        पूरे जो प्रण ठाने
 
'पर ऐसी मर्यादा पाले!
पत्नी की लज्जा न सँभाले!
कभी निकाले, कभी बुला ले
                     क्यों वह रोष न माने!'

सुन पति-वचन स्नेह में साने
काँपी देह, नयन भर आये, कहा न कुछ सीता ने