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माँ का हृदय हो उठा कातर
बोली सुत की ओर पलटकर--
'तू यह दुःख दुख क्या जाने!'
 
'तूने सेतु सिन्धु पर बाँधा
पर नारी का हृदय न साधा
अब तक मिली न कोई बाधा
पूरे जो प्राण प्रण ठाने
 
'पर ऐसी मर्यादा पाले!
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