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सुप्रिया रोॅ दोहा-2 / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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आपनों बुद्धि शक्ति सें, कमी करी लेॅ दूर।
मदद तेॅ करतौं कोय नै, हॅंसतौं सब भरपूर।।

चंदा साथें चाँदनी, धवल खुशी में संग।
रंगलै वीणा पोर-पोर, वीणा तोरा रंग।।

परदोषो पर सोचना, नै छै अच्छा काम।
वीणा नै रहतै यहाॅं, सब जैतै सुर धाम।।

व्यर्थ जिनगी नै जियोॅ, धरलोॅ ढेरी काम।
वीणा बढ़िया काम करोॅ,जग में रहतौं नाम।।

जत्ते जिनगी में मिल्हौं, करना छौ संतोष।
वीणा दुख में नै कभी, दिहोॅ केकरोॅ दोष।।

झुठे बाॅंचै गियान छै, दोसरा लेली संत।
कथनी करनी में फरक, जल्दी होथौं अंत।।

मेंहदी पकिया रंग छै, लागै अंग अनंग।
रंगलै एैन्होॅ हाथ में, वीणा प्रीतम संग।।

दोसरा छप्पर आग जें, राखै छै सुलगाय।
वीणा घर बचलै कहाॅं, देलकै गाॅंव जराय।।

फिकर तिलकोॅ के नै करोॅ, बेटी दहो पढ़ाय।
बेटी सुख करथौं सदा, चिंता दूर भगाय।।

राजमद इ कुरसी पकड, तिगड़म देश बिकाय।
वीणा दुख में देश छै, बचलै कहाॅं उपाय।।