भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह का अख़बार / कृष्ण कुमार यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज सुबह का अख़बार देखा
वही मार-काट, हत्या और बलात्कार

रोज़ पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं
क्या हो गया है इस समाज को

ये घटनाएँ उसे उद्वेलित नहीं करतीं
सिर्फ ख़बर बनकर रह जाती हैं
कोई नहीं सोचता कि यह घटना
उसके साथ भी हो सकती है

और लोग उसे अख़बारों में पढ़कर
चाय की चुस्कियाँ ले रहे होंगे ।