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सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा / विनय मिश्र

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 इस मौसम में जहांँ खुशियांँ
 जीवन से
 पत्तियों की तरह झर रही हैं
 और चढ़ती हुई रात
 ऊंँचे स्वर में
 दिन का मरसिया पढ़ रही है
 सोचता हूंँ
 हौसलों के बल पर
 अंँधेरे के ख़िलाफ़
 जागते रहने से
 कुछ तो वक़्त गुजरेगा
 यह अलग बात है
  कि जोर चाहे जितना लगा लूंँ
  सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा