भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरज भी दुबका (हाइकु) / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 25 मार्च 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

१-धरा सहमी

सूरज भी दुबका

ठण्ड को देख |


 
२-पार्टी न जाएं

गर्म लिबास बिना

हंसी उडाएं |


 
३-जाड़े से पूछा

कहाँ चले हो भाई

गरीब -घर |


 
४-सर्दी की मार

अमीर कैसे जाने

गरीब जाने |


 
५-सर्दी गायब

रजाई में लिपटा

सूरज हँसे |


 
६-शाल-स्वेटर

टोपी व मफलर

सर्दी भगाए |


 
७-जाड़े की धूप

तन को सहलाए

मन को भाए |


 
८-सर्द हवाएं

तन को ठिठुराएं

सहा न जाए |<br