भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सॉरी मत बोलो दादाजी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाक पकड़ कर बेमतलब मत, सॉरी बोलो दादाजी।
नहीं जानते कुछ भी अपनी, पोल न खोलो दादाजी।

कान पकड़कर ही तो सॉरी, बोला जाता है हरदम,
किंतु ताज्जुब है दादाजी, अक्ल आपमें इतनी कम।

अब तो कान पकड़ कर सॉरी, सबको बोलो दादाजी।
नहीं जानते कुछ भी अपनी, पोल न खोलो दादाजी।

नहीं थैंक यू अब तक बोला, कितने काम किए मैंने,
दिन भर घर में घूमा करते, लुंगी एक फटी पहने।

'थैंक्स-थैंक्स' के मधुर शब्द, कानों में घोलो दादाजी।
नहीं जानते कुछ भी अपनी, पोल न खोलो दादाजी।

जब जाता है कहीं कोई भी, बाय-बाय, टाटा करते।
कभी अचानक मिले कोई तो, उसे हाय हैलो कहते।

नई सभ्यता सीखो अपना, हृदय टटोलो दादाजी।
नहीं जानते कुछ भी, अपनी पोल न खोलो दादाजी।