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सौन्दर्य लहरी / पृष्ठ - ५ / आदि शंकराचार्य
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तवाधारे मूले सह समयया लास्यपरया ।
नवात्मानं मन्ये नवरस महाताण्डव नटम् ॥
उभाभ्यामेताभ्यामुदय विधिमुद्दिश्य दयया ।
सनाथाभ्यां जज्ञेजनक जननीमज्जगदिदम् ॥४१॥
गतै र्माणिक्यत्वं गगन मणिभिः सान्द्र घटितं ।
किरीटं ते हैमं हिमगिरिसुते कीर्तयति यः ॥
सनीडेयच्छायाच्छरणशबलं चन्द्र शकलम् ।
धनुः शौनासीरं किमिति न निबध्नातिधिषणाम् ॥४२॥