भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सौ ऐब हैं मुझमें, न कोई इल्मो-हुनर है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
कुछ आपकी ख़ामोश निगाहों का असर है | कुछ आपकी ख़ामोश निगाहों का असर है | ||
− | फूलों से हार | + | फूलों से हार गूँथके लाना है और बात |
काँटों से ज़िन्दगी को सजाने में हुनर है | काँटों से ज़िन्दगी को सजाने में हुनर है | ||
कुछ बुलबुलों ने लूट लिया, कुछ बहार ने | कुछ बुलबुलों ने लूट लिया, कुछ बहार ने | ||
− | + | बाक़ी जो है गुलाब वो दुनिया की नज़र है | |
<poem> | <poem> |
01:51, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
सौ ऐब हैं मुझमें न कोई इल्मोहुनर है
ज़र्रे को आफ़ताब किया, तेरी नज़र है
हरदम चिराग़-दर-चिराग़ जोड़ते चलो
यह रात है ऐसी कि नहीं जिसका सहर है
कुछ तो सता रहा है ज़माने का ग़म हमें
कुछ आपकी ख़ामोश निगाहों का असर है
फूलों से हार गूँथके लाना है और बात
काँटों से ज़िन्दगी को सजाने में हुनर है
कुछ बुलबुलों ने लूट लिया, कुछ बहार ने
बाक़ी जो है गुलाब वो दुनिया की नज़र है