भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्त्री / सुमित्रानंदन पंत

50 bytes added, 13:53, 10 जुलाई 2013
|संग्रह=ग्राम्‍या / सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}{{KKPrasiddhRachna}}<poem>यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर ,<br>::दल पर दल खोल ह्रदय हृदय के अस्तर <br>::जब बिठलाती प्रसन्न होकर <br>::वह अमर प्रणय के शतदल पर !<br>
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर <br>,::क्षण में प्राणों की पीड़ा हर <br>,नवजीवन ::नव जीवन का दे सकती वर <br>::वह अधरों पर धर मदिराधर .<br>मदिराधर।
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,<br>वस्नाव्र्त ::वासनावर्त में दल डाल प्रखर <br>::वह अंध गर्त में चिर दुस्तर <br>::नर को धेकेल ढकेल सकती सत्वर ! <br/poem>रचनाकाल: जनवरी’ ४०
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,095
edits