भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्त्री / सुमित्रानंदन पंत

69 bytes added, 11:54, 30 अप्रैल 2010
<poem>
यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर,
::दल पर दल खोल ह्रदय हृदय के अस्तर::जब बिठलाती प्रसन्न होकर::वह अमर प्रणय के शतदल पर !
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर,::क्षण में प्राणों की पीड़ा हर,नवजीवन ::नव जीवन का दे सकती वर::वह अधरों पर धर मदिराधरमदिराधर।
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
::वासनावर्त में दल डाल प्रखर::वह अंध गर्त में चिर दुस्तर::नर को धेकेल ढकेल सकती सत्वर ! रचनाकाल: जनवरी’ ४०
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits