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"स्त्री / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर,
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यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी उर के भीतर,
 
::दल पर दल खोल हृदय के अस्तर
 
::दल पर दल खोल हृदय के अस्तर
 
::जब  बिठलाती  प्रसन्न  होकर
 
::जब  बिठलाती  प्रसन्न  होकर

16:23, 4 मई 2010 का अवतरण

यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी उर के भीतर,
दल पर दल खोल हृदय के अस्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर!

मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर,
क्षण में प्राणों की पीड़ा हर,
नव जीवन का दे सकती वर
वह अधरों पर धर मदिराधर।

यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
वासनावर्त में डाल प्रखर
वह अंध गर्त में चिर दुस्तर
नर को ढकेल सकती सत्वर!

रचनाकाल: जनवरी’ ४०