भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्नान / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 21 अप्रैल 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वसन्ती भोर में
सूर्य की सुनहरी रश्मियों में
तुम नहा रही हो
अपने में मगन

सुनहले पाँव ...
मनोहर ग्रीवा — स्कन्ध
कितने प्यारे
कितने मनहर ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना