भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वार्थी / राखी सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 4 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राखी सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुच्छ थी इतनी वह अ-वस्तु
मांगा जा सकता था दान जिसका
सहर्ष, हांथ पसार

निरपराध मैंने
मांगा तो था क्षमा भी
जुड़े थे दोनों कर मेरे

निर्मल ही होता है कायर
ओ असुरक्षित मानव!
तुमने इतिहास का सबक पढ़ा था

क्लेश भरी मुट्ठी की उंगली तनी थी मेरी दिशा
वितृष्णा ने चीत्कार किया-
जाओ, नहीं कहलाना महान!