भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्‍थान देवता - 3 / संतोष अलेक्स

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 31 मार्च 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीड़ा पेड़ पर लटकी हुई चिंदियाँ
धूप में चमक रही है
अम्‍मा खुश है
मौसम को लेकर
तय समय पर
चिन्दियाँ बेचने बैठ गई
पीड़ा पेड़ के नीचे

कुछ लोगा पूजा कर लौट गए
उन लोगों ने
चिन्दियाँ नहीं खरीदी थी

शाम होने को था
अम्‍मा का चेहरा उतर गया
बोहनी नहीं हुई अब तक

अचानक हवा चली
उड़ गई चिन्दियाँ
जैसे तैसे उन्‍हें उठाकर
वापस अपने जगह
पर पहुँची तो
ऊंचे कद की एक औरत
सामने खड़ी पाई

अम्‍मा ने उन्‍हें
मंदिर में पहले कभी नहीं देखा
सारी चिन्दियाँ खरीद ली उसने
टोकरी संभालकर
मुड़कर देखा तो
वह सीढ़ियाँ उतर रही थी
खुशी से
अम्‍मा पूजा करने गई
रह गई अवाक