भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हजार बार हार हो तो हो रहे तो हो रहे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
हजार बार हार हो तो हो रहे तो हो रहे।
सपाट गर लिलार हो तो हो रहे तो हो रहे।
बस एक दीप चाहिए बना रहे जो राहबर,
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
बहू तो लाइए जरा, सुनेगा फिर न आपकी,
सपूत होनहार हो तो हो रहे तो हो रहे।
न आँख मूँद कर कभी किसी को मानिए ख़ुदा,
कोई युगावतार हो तो हो रहे तो हो रहे।
लगाइए निराइए जहाँ में फ़स्ल प्यार की,
भविष्य में तुषार हो तो हो रहे तो हो रहे।
विजय समय की बात है जो मित्र मेरे साथ हों,
रक़ीब होशियार हो तो हो रहे तो हो रहे।