भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हथेलियाँ तुम्हारी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 2 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

159
ठिठुरे रिश्ते
गर्माहट दे गई
नेह की लोई ।
160
तुम्हारा ख्याल
पोंछ देता उदासी
बना रूमाल।
161
आँसू छलकें
हथेलियाँ तुम्हारी
आ पोंछ जातीं।
162
नैनों में तिरा
जब भी अश्रुजल
तुम थे विकल ।
163
शीत लहर-
हवाओं में जा घुली
बर्फ की डली।
164
डूबता बिम्ब
चिलकता अम्बर
मेघ मुकुट
165
बेपत गाछ
थर थर काँपता
शीत लहर।
166
प्रश्वास रटे
एक एक स्वर में
प्रणव प्राण।
167
मिला न तट
रटते प्राण घट
उठी है डोली।
168
गुमान टूटा
जो सगे थे अपने
उन्होंने लूटा।
`69
अच्छा ही हुआ
शाप हमको दिया
जिन्हें दी दुआ।
170
तुम न आते
छलिया जो संग थे
जाने न जाते।
171
क्रूर जो मन,
निरर्थक सभी हैं
पूजा-वंदन ।