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"हमको ऐसे मिली ज़िंदगी ! / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर

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इक मुड़ी जीन्स में, फंस गई सीप सी
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इक मुड़ी जीन्स में, फँस गई सीप-सी
आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप सी
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आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप-सी
  
नाखुनों में घुसी, कुछ हठी रेत सी
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नाखूनों में घुसी, कुछ हठी रेत-सी
पेड़ बौने लिये, बोन्साई खेत सी
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पेड़ बौने लिए, बोन्साई खेत-सी
 
   
 
   
टूटी इक गिटार सी, क्लिष्ट व्यवहार सी
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टूटी इक गिटार-सी, क्लिष्ट व्यवहार-सी
नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार सी
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नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार-सी
 
   
 
   
फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम सी
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फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम-सी
बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम सी
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बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम-सी
 
   
 
   
 
हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी
 
हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी
 
शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी
 
शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी
 
   
 
   
देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान सी
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देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान-सी
भाव से हो रहित, हाय! उस गान सी
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भाव से हो रहित, हाय! उस गान-सी
 
   
 
   
 
खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी
 
खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी
 
धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी
 
धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी
 
   
 
   
आदतों की बनी इक गहन रेख सी
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आदतों की बनी इक गहन रेख-सी
बस जो होती बहु में ही, मीन-मेख सी  
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बस जो होती बहू में ही, मीन-मेख-सी  
 
   
 
   
बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स सी
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बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स-सी
जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स सी
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जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स-सी
 
   
 
   
 
हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई
 
हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई
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ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी
 
ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी
 
पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी !   
 
पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी !   
 
 
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19:29, 11 अप्रैल 2009 का अवतरण


इक मुड़ी जीन्स में, फँस गई सीप-सी
आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप-सी

नाखूनों में घुसी, कुछ हठी रेत-सी
पेड़ बौने लिए, बोन्साई खेत-सी
 
टूटी इक गिटार-सी, क्लिष्ट व्यवहार-सी
नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार-सी
 
फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम-सी
बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम-सी
 
हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी
शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी
 
देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान-सी
भाव से हो रहित, हाय! उस गान-सी
 
खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी
धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी
 
आदतों की बनी इक गहन रेख-सी
बस जो होती बहू में ही, मीन-मेख-सी
 
बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स-सी
जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स-सी
 
हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई
फिर गले से लगाया तो शर्मा गई

ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी
पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी !