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हमने ख़ुद अपने ही हाथों से जलाईं हसरतें / श्रद्धा जैन
Kavita Kosh से
जब हमारी बेबसी पर मुस्करायीं हसरतें
हमने ख़ुद अपने ही हाथों से जलाईं हसरतें
ये कहीं खुद्दार के क़दमों तले रौंदी गईं
और कहीं खुद्दरियों को बेच आईं हसरतें
सबकी आँखों में तलब के जुगनू लहराने लगे
इस तरह से क्या किसी ने भी बताईं हसरतें
तीरगी, खामोशियाँ, बैचेनियाँ, बेताबियाँ
मेरी तन्हाई में अक्सर जगमगायीं हसरतें
मेरी हसरत क्या है मेरे आंसुओं ने कह दिया
आपने तो शोख रंगों से बनाईं हसरतें
सिर्फ तस्वीरें हैं, यादें हैं, हमारे ख़्वाब हैं
घर की दीवारों पे हमने भी सजाईं हसरतें
इस खता पे आज तक 'श्रद्धा' है शर्मिंदा बहुत
एक पत्थरदिल के क़दमों में बिछायीं हसरतें