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"हमारे देवता / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

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हमारे देवता छोटे अशक्त और व्यक्तिगत क़िस्म के हैं  
 
सुन्दर सर्वशक्तिमान संप्रभु स्वयंभू सशस्त्र देवताओं से अलग  
 
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उनके चहरे बेडौल बिना तराशे हुए है  
 
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भीमकाय सायों से घिरे हुए  
 
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वे अपनी तकलीफ किसी को बता नहीं पाते  
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कभी-कभी उनके भीतर से एक आर्त पुकार सुनाई देती है—बचाओ!
 
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13:28, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

आज के परेशानकुन वक़्त में एक कविता

सार्वजनिक और पराक्रमी देवताओं के साम्राज्य में
हमारे देवता छोटे अशक्त और व्यक्तिगत क़िस्म के हैं
सुन्दर सर्वशक्तिमान संप्रभु स्वयंभू सशस्त्र देवताओं से अलग
उनके चहरे बेडौल बिना तराशे हुए है
अक्सर नंगे पैर वे हमारे हाथों में हाथ लिए हुए चलते हैं
हम उनसे ज्यादातर अपने दुःख और कभी अपने सुख भी बताते हैं
उनके पास रहने के लिए बड़े तो क्या छोटे मन्दिर भी नहीं हैं
वे घर से बाहर कम जाते ज़्यादातर हमारे भीतर ही रहते
या कभी-कभी उनका सफ़र कुछ दूर
दो पत्थरों को जोड़ कर बनाए गए ठिकाने तक होता
जहाँ नीम उजाले में वे मुश्किल से पहचाने जाते

हमारे देवता ताक़तवर देवताओं से घबराए हुए और चुप्पे हैं
उनके पास जाने से कतराते हैं
उनके लिए उन जगमग मन्दिरों में कोई जगह नहीं
जहाँ ढोल-नगाड़े बजते हैं अनुष्ठान तुमुल कोलाहल होता है
आवाहन ध्यान स्तुतियाँ घण्टियाँ घड़ियाल बलियाँ मंत्रोच्चार
ब्रहमाओं विष्णुओं वामनों इन्द्रों के समय में
हमारे व्यक्तिगत देवता किसी बुद्ध की तरह आत्म में लीन रहते
दुर्गाओं कालियों अष्टभुजाओं सिंहारूढ़ों खड्ग-खप्परधारिनियों के सामने
हमारी देवियाँ भी पुरानी साड़ियाँ पहने हुए स्त्रियाँ हैं
बहुत सी अचिन्हित बीमारियों से पीड़ित
जो ज़मीन पर बैठी अपने पैरों या हाथों के नाखून कुरेदती दिखती हैं

हमारे देवता आँखें खोलकर हैरानी से देखते हैं
शक्तिशाली देवताओं के जुलूस ठठ के ठठ हथियारबन्द
चल रहे हैं तलवारें त्रिशूल भाले बन्दूकें आग्नेयास्त्र लहराते
उन्हें मुक्तहस्त लोगों के बीच बाँटते हुए
सड़कों गलियों चौराहों पर बढ़ते हुए
तब हमारे देवता किसी अज्ञात जगह दुबक जाने की सोचते हैं
उनके हाथ में कुछ नहीं होता कोई अस्त्र नहीं
हद से हद वे ज़मीन से कुछ पत्थर उठा सकते हैं
लेकिन वे उन्हें फेंकने में भी संकोच करते हैं
सार्वजनिक देवता जब रात को सुख-शैयाओं पर सो जाते हैं
हमारे देवता अपनी विकलता में जागते रहते हैं
भीमकाय सायों से घिरे हुए
वे अपनी तकलीफ़ किसी को बता नहीं पाते
कभी-कभी उनके भीतर से एक आर्त पुकार सुनाई देती है—बचाओ!