भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारे शब्द / महेश वर्मा

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:41, 28 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे ज़्यादा से ज़्यादा पहुँचाना चाहते हैं आज का अगले दिन
देर रात छपते हैं अखबार

अभी इस वक्त
अख़बारी काग़ज़ पर धीमे धीमे सूख रहे होंगे
श्रद्धांजलि के वे शब्द
जो दोपहर हम अख़बार के दफ़्तर दे आये थे.

थोड़ा वे उन शब्दों से अलग थे जो वाकई हमने बोले थे उसी सुबह

छप के थोड़ा अलग वे लगते होंगे

कुछ और वे बदल चुके होंगे
जब हमसे मिलेंगे सुबह के उजाले में
चाय के साथ.