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हम जैसों से यारी मत कर / श्याम सखा 'श्याम'

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हम जैसों से यारी मत कर
ख़ुद से यह गद्दारी मत कर

तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर

रोक छ्लकती इन आँखों को
मीठी यादें ख़ारी मत कर

हुक्म-उदूली का ख़तरा है
फरमाँ कोई जारी मत कर

आना-जाना साथ लगा है
मन अपना तू भारी मत कर

ख़ुद आकर ले जाएगा वो
जाने की तैयारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

‘श्याम’निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर