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'''लेखन वर्ष: 2004२००४/२०११'''
हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा
तुझे ढूँढ़ने वाली यह ढूँढ़े जो वह 'नज़र ' तन्हा
यूँ तो तेरी तस्वीर है दिल में मगरफिर भी यह दीवारो-दर <ref>दीवारें और दरवाज़े</ref> तन्हा
घर में हम हैं और आईना आइना भी हैबिन तेरे हम दोनों यह , ये घर तन्हा
तुम्हें देखा आज फिर रू-ब-रू, <ref>आमने-सामने</ref>तुम्हें न दिखा , हूँ इस क़दर तन्हा
बिन तुम्हारे इस तरह कुछ यूँ तन्हा हूँजैसे बिन फूलों फूल के कोई शज़र <ref>पेड़</ref> तन्हा
बिन तुम्हारे कहीं दिल लगता नहीं
तुम बिन और मैं अब जाऊँ किधर तन्हा
तुम नहीं तो यूँ लगता है मुझकोमुझेमैं हूँ आज भी शहर-ब-शहर <ref>एक शहर से दूसरे शहर तक</ref> तन्हा
जलेंगे सारी-सारी रात आज फिर हमरहेगी आज फिर से रहगुज़र <ref>रास्ते</ref> तन्हा
गर तेरी यादें हाथ होती बढ़ातींतो क्या कहूँ मैंजाता ज़िन्दगी का हर पहर रहता जीवन भर तन्हा
दरिया का पानी बाँध दिया है किसी नेबाँधा किसने
बिन पानी हुई यह नहर तन्हा
न चाँद हँसा , वो खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> मुस्कुरायाढलातुम बिन यह हुई शामो-फ़ज़िर<ref>शाम और भोर</ref> तन्हा
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