भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम तो सदियों से शोषित हैं/ सर्वत एम जमाल

Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 19 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                  रचनाकार=सर्वत एम जमाल  
                  संग्रह=
                  }}
                  साँचा:KKCatGazal

हम तो सदियों से शोषित हैं
आतंकित थे, आतंकित हैं

क्रांतिबीज बोने निकले थे
हम समझे मुर्दे जीवित हैं

हैं जितने भी हंसते चेहरे
सच बतलाऊँ सब पीड़ित हैं

बंधन टूटे, युग बीता पर
आँखें अब तक सम्मोहित हैं

सदियों पहले घात लगी थी
लोग अभी तक आशंकित हैं

अपनी चिंता है पिछड़ापन
आप सुधारों पर चिंतित हैं

अंतरिक्ष तक दुनिया है, हम
सिर्फ कुँए तक ही सीमित हैं

सूरज को यह कौन बताए
आज अँधेरे अनुशासित हैं