भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम दोनों / बोधिसत्व

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम दोनों,
रात-रात-भर, जाग-जागकर
खेत सींचते थे
मैं और पिता ।

वे मुझे सींचना सिखाते थे...
सिखाते थे वह सब कुछ
जो उन्हें आता था ।

सब कुछ सीखकर मैं निकल भागा
और पिता भी...नहीं रहे,

रोना चलता रहा दिनों तक
हम भी रोए—
तब से परती हैं खेत, अब
कौन जोते बोए ।