भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम दोनों / रघुवीर सहाय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 14 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय |संग्रह = }} <poem> '''बट्टू जी के लिए हम दो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बट्टू जी के लिए

हम दोनों अभी तक चलते-फिरते हैं
लोगबाग़ आते हैं हमारे पास
हम भी मिलते-जुलते रहते हैं
एक हौल बैठ गया है मगर मन में
कि यह सब बेकार है
हममें से किसी को न जाने कब
जाना पड़ जा सकता है
हम दोनों अकेले रह जाने को
तैयार नहीं।

(बट्टू जी यानी कवि-पत्नी विमलेश्वरी सहाय)