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हम भी दुखी तुम भी दुखी / ओम प्रभाकर

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रातरानी रात में
दिन में खिले सूरजमुखी
किन्‍तु फिर भी आज कल
हम भी दुखी
तुम भी दुखी !

हम लिए बरसात
निकले इन्‍द्रधनु की खोज में
और तुम
मधुमास में भी हो गहन संकोच में ।
और चारों ओर
उड़ती है समय की बेरूखी !

सिर्फ आँखों से छुआ
बूढ़ी नदी रोने लगी
शर्म से जलती सदी
अपना 'वरन' खोने लगी ।
ऊब कर खुद मर गए
जो थे कमल सबसे सुखी ।
हम भी दुखी
तुम भी दुखी ।