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तीर जाह्नवी के तार-तार चला आया मैं
 
अंग में उमंग ही उमंग लिए लिये आयी हैशिव की विभूति निज संग लिए लिये आयी है जैसे आ गया मैं रंग-ढंग अस्त-व्यस्त लिए लिये यह भी कुछ वैसी ही तरंग लिए लिये आयी है
 
महिमा में इसकी न तिल भर अत्युक्ति है
यही भव-मुक्ति, पराभव से विमुक्ति है
काम-कपिलाग्नि में झुलसे झुलसते हुए जीवन को शान्ति से सहेजने की  की एक यही एक युक्ति है
 
होता यदि मीन तो लहर में किलोलता
होता जो स्वतन्त्र निज मन्त्र यहीं बोलता
 
जीवन की गति को का विराम कभी होना है
कृति का कृतिकार को प्रणाम कभी होना है
माता! पहचान ले, सुरम्य इन्हीं लहरों में
 
सारे उर-शूल तुझे सौंप चला जाऊँगा
जीवन दूखमूलदुखमूल, तुझे सौंप चला जाऊँगा
मुट्ठीभर धूल छोड़ काल की अकूलता में
पत्ते और फूल तुझे सौंप चला जाऊँगा
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