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"हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर

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मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल,
 
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मुझे भी अपने गुनाहों का सिल्सिला न कहो|
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ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत",
 
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10:25, 15 फ़रवरी 2010 का अवतरण

हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो|
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो|

न जाने कौन सी मज़बूरीयों का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो|

तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे,
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो|

ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो|

हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ,
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो|

मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल,
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो|

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत",
हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कहो|