भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे / फ़राज़
Kavita Kosh से
Kartikey agarwaal khalish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 31 मार्च 2011 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे,
किसको सैराब करे वो किसे प्यासा रक्खे ।
कौन निभाता है उम्र भर ताल्लुक़ इतना,
ऐ मेरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे ।
हंस ना इतना फ़क़ीरों के अकेलेपन पर,
जा खु़दा मेरी तरह तुझको भी तन्हा रक्खे ।
कम नहीं तमा-ए-इबादत भी हिर-ए-ज़र से,
फ़क्र तो वो है के जो दीन ना दुनिया रक्खे ।
मुझ को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तेरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे
दिल भी पागल है के उस शख़्स से वाबस्ता है,
जो किसी और का होने दे ना अपना रक्खे ।
मुझको अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तेरा,
कोई तुझसा हो तो फिर नाम भी तुझसा रक्खे ।
ये अता’अत है क़ता’अत है के चाहत है ’फ़राज़’,
हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रक्खे ।